अर्थ- माता मैनावंती की दुलारी अर्थात माता पार्वती जी आपके बांये अंग में हैं, उनकी छवि भी अलग से मन को हर्षित करती है, तात्पर्य है कि आपकी पत्नी के रुप में माता पार्वती भी पूजनीय हैं। आपके हाथों में त्रिशूल आपकी छवि को और भी आकर्षक बनाता है। आपने हमेशा शत्रुओं का नाश किया है।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
अर्थ: पवित्र मन से इस पाठ को करने से भगवान शिव कर्ज में डूबे को भी समृद्ध बना देते हैं। यदि कोई संतान हीन हो तो उसकी इच्छा को भी भगवान शिव का प्रसाद निश्चित रुप से मिलता है। त्रयोदशी (चंद्रमास का तेरहवां दिन त्रयोदशी कहलाता है, हर चंद्रमास में दो त्रयोदशी आती हैं, एक कृष्ण पक्ष में व एक शुक्ल पक्ष में) को पंडित बुलाकर हवन करवाने, ध्यान करने और व्रत रखने से किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं रहता।
अर्थ: हे भोलेनाथ आपको नमन है। जिसका ब्रह्मा आदि here देवता भी भेद न जान सके, हे शिव आपकी जय हो। जो भी इस पाठ को मन लगाकर करेगा, शिव शम्भु उनकी रक्षा करेंगें, आपकी कृपा उन पर बरसेगी।
भजन: शिव शंकर को जिसने पूजा उसका ही उद्धार हुआ
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
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जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
शिव भजन
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥